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क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाई जा सकती है? अगर हां, तो किस प्रकार? अगर नहीं, तो क्यों नहीं? ‘CONTEST’

TRUST ME,WE CAN DO IT!
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मनुष्य अगर ठान ले तो वह क्या नहीं कर सकता है!!!…आज के ज़माने में तो इंसान की पहुँच चाँद तक हो गई है फिर धरती पर रहकर अपने ही देश के मुख्या भाषा–’हिंदी’ को प्रथम श्रेणी में क्यूँ नहीं रख सकता है??…वास्तविकता से भागने वाले लोग और दूसरों की ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाने वाले लोगों की पहली बात तो स्वयं का कोई वजूद नहीं होता..हिंदी भाषा को लोगों ने कब का पीछे छोड़ दिया है,वह तो अब बस नाम मात्र का रह गया है.विकास का अर्थ यह तो नहीं होता है की दूसरों के रंग में रंग जाएँ या जो अपनी चीज़ हो,उसे विकास के लिए बदल दें.अमेरिका में तो यह अभी तक नहीं पाया गया है की उनके दफ्तरों के कार्यों में या विद्यालयों में कहीं भी हिंदी भाषा या किसी अन्य भाषा के चलन को अपनाया गया हो.तो फिर हम ही बार-बार विकास के नाम पर मुर्ख क्यूँ बनते हैं और बिना स्वयं के राष्ट्र एवं भाषा के बारे में सोचे,फ़ौरन ‘हाँ’ कर देते हैं सारे कार्यों को.अगर इतना ही शौक है अंग्रेजी भाषा को मुख्या भाषा बनाने का तो कह दो उन पर्यटकों से की वे भारत आये तो यहाँ की भाषा,वेश-भूषा,रंग-roop,पहनावे-ओढ़ावे,चाल-ढाल को नहीं अपनाएं.गुणगान करना है तो अपनी मिटटी एवं अपने भाषा का करो.मगर सर्कार बस स्वयं के देश के बारे में गंभीर से विचार करे तो हिंदी भाषा को सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्या धरा में लाने के लिए कई कारवाई करा सकती है एवं कई कठोर कदम ले सकती है.मगर सर्कार ऐसा होने नहीं देगी क्यूंकि वह स्वयं दुसरे देशों का घुस खाती है और दूसरों देशों के रवैय्ये को प्रचलित कर लेती है.सर्कार चाहे तो विध्यालों एवं दफ्तरों में ‘अंग्रेजी’ पर पाबन्दी laga सकती है.अरे,स्वयं के देश की भाषा ‘हिंदी’ तो सही ढंग से आती नहीं है लोगों को और सबसे पहले वे अंग्रेजी के ही रंग में रंग जाते हैं.वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर से विदेशी हमारे देश में कब्ज़ा करेंगे और हम उनके गुलाम बन jaenge. देश सो रहा है और हम बस dekh रहे हैं.आखिर,कब तक प्रचलन रहेगा ऐसे सभ्यता का.अरे,विकास के होड़ में हम अपनी ही दिखावे की rangeen दुनिया में भटक चुके हैं और वास्तविकता से नाता भी तोड़ चुके हैं.भारत jaise देश को chalane वाले भी bhrasht है,उन्हें तो बस bahaana चाहिए.कोई फिक्र नहीं है..उनके हिसाब से देश तो चल ही रहा है चाहे भ्रष्टाचार से चल रहा हो या बड़े-बड़े किये गए झूटे वादों से. कोई जागरूक कराने वाला नहीं है.भाषा के प्रति न तो मोह है न ही अब कभी हो पेग.हमारी मातृभाषा लुप्त हो चुकी

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